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Heroes Of Jallianwalla Bagh Remembered

Jallianwala Bagh massacre by Colonel Reginald Edward Harry Dyer: Here's what happened 102 years ago

Jallianwala Bagh Massacre: On April 13, 1919, innocent men, women and children died after Colonel Reginald Edward Harry Dyer, ordered forces to fire
 |  Satyaagrah  |  Britishers

13 अप्रैल, 1919 (वैसाखी के दिन) अमृतसर के जलियांवाला बाग में एक सार्वजनिक सभा की घोषणा हुई। यह स्थान चारों ओर मकानों से घिरा हुआ है और भीतर जाने के लिए केवल एक ही मार्ग है । उस दिन उस सभा में कोई बीस हजार से भी अधिक स्त्री-पुरुष, बच्चे एकत्र हुए थे कि अचानक पंजाब के temporary ब्रिगेडियर जनरल रेजिनल्ड एडवर्ड हैरी डायर ने वहां प्रवेश किया। उसके साथ सौ सशस्त्र हिन्दुस्तानी सिपाही थे और पचास अंग्रेज।

एक व्यक्ति भाषण दे रहा था और लोग शान्त बैठे थे। जनरल ने गोली चलाने का हुकुम दिया। गोलियां हिन्दुस्तानी फौजियों से चलवाई गई और अंग्रेज उनके पीछे रहे । गोलियाँ तब तक चलीं जब तक कारतूस खत्म नहीं हो गए। 1650 राउन्ड फायर किए गए। भागने या बचने को कहीं जगह न थी फिर भी असहाय लोग इधर-उधर भागे और बहुत से कुएं में कूद पड़े । जलियांवाला बाग लाशों से भर गया। रात भर लाशें वहीं पड़ी रहीं और घायल भी। किसी ने उनके मुंह में पानी तक न डाला।

उस समय के एक सिविल सर्जन डॉ. स्मिट ने कहा था कि 1,526 लोग मारे गए थे । हाँलकी मारे गए लोगों की पूरी सूची कभी प्रकाशित नहीं हुई थी।

" Jallianwala Bagh, 1919: the real story" के लेखक किश्वर देसाई ने कहा कि शहीदों की संख्या 2000 या उससे अधिक हो सकती है । उसने कहा कि उन्हे 1919 में उस दिन मारे गए लोगों के नाम की लिस्टिंग की एक हस्तलिखित फ़ाइल मिली थी । "शरीर की गिनती आधिकारिक तौर पर केवल अगस्त में लिया गया था, नरसंहार के लगभग चार महीने बाद," और वास्तविकता ये है की उस समय  बहुत सारे सबूत मार्शल लॉ के कारण गायब करवा दिए गए थे।

दरअसल जलियांवाला बाग की घटना से कुछ समय पहले 1919 में पंजाब में रह रहे Europeans में एक डर बैठ गया था कि भारतीय मिलकर ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकेंगे । इस समय महात्मा गांधी ने 30 मार्च को पूरे भारत में हड़ताल बुलाया गया जो बाद में बदलकर 6 अप्रैल कर दिया गया था और इस दौरान कुछ क्षेत्रों में हिंसा हो चुकी थी। हिंदू-मुस्लिम की बढ़ती एकता से अधिकारी और भी चिंतित होते जा रहे थे।

पंजाब के Lieutenant-Governor सर माइकल O’Dwyer प्रांत के प्रमुख आंदोलनकारियों को वापस भेजने का फैसला किया । उन लोगों में से एक डॉ सत्यपाल थे, जो की एक हिंदू थे और इन्होंने World War I के दौरान Royal Army Medical Corps के साथ सेवा की थी। सत्यपाल non-violent civil disobedience की वकालत करते थे और अधिकारियों ने उन्हे Public place पर बोलने के लिए मना किया था । एक अन्य क्रांतिकारी थे डॉ सैफुद्दीन किचले, जो एक मुस्लिम बैरिस्टर थे, वो राजनीतिक बदलाव चाहते थे और अहिंसा का प्रचार भी करते थे। पंजाब सरकार के आदेश पर कार्रवाई करते हुए जिला मजिस्ट्रेट ने दोनों नेताओं को गिरफ्तार कर लिया।

9 अप्रैल 1919 को एक भीड़ सिविल लाइंस में जाने वाले पुल पर इकट्ठा हुई, जहां अंग्रेज रहते थे, और इन दोनों की रिहाई की मांग की । भीड़ को संभालने में असमर्थ, सैनिक डर गए और गोलीबारी शुरू कर दी जिससे कई प्रदर्शनकारियों की हत्या हो गई।
Sir Michael Francis O'Dwyer (ड्वायर), उस समय 1913 से लेकर 1919 तक पंजाब का Lieutenant Governor था, ये एक Irish था और Indian Civil Service (ICS) अधिकारी था।

ओ'ड्वायर के कार्यकाल के दौरान ही 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर में जलियांवाला बाग नरसंहार हुआ था। नतीजतन, उनके कार्यों को भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के उदय में सबसे महत्वपूर्ण कारणों में से माना जाता है । ओ ' ड्वायर ने जलियांवाला बाग में रेजिनाल्ड डायर की कार्रवाई का समर्थन करते हुए यह स्पष्ट कर दिया कि उन्हें भीड़ पर गोली मारने के डायर के आदेश सही लगे । बाद में उन्होंने 15 अप्रैल को पंजाब में मार्शल लॉ की व्यवस्था की और इसे 30 मार्च 1919 को backdate किया।

13 March 940 में इस नरसंहार के प्रतिशोध में भारतीय क्रांतिकारी उधम सिंह ने ओ ' ड्वायर की London में हत्या कर दी थी।

देसाई ने अपनी पुस्तक में कहा है कि ओ ' Dwyer, जो उस समय retirement के करीब था, और सरकार में अन्य अधिकारी, स्वतंत्रता संग्राम में पंजाब के बढ़ते महत्व से परेशान थे और इसकी जवाबी कार्रवाई में पंजाब के लोगों को सार्वजनिक रूप में मारना, बम फेंकना, क़ैद करना, घिसटने के लिए मजबूर करना, भूख से मारना, और यहां तक कि जान से मार डालना जैसी वारदातें करते रहते थे । इसलिए इसकी संभावना अधिक है कि नरसंहार एक सोची-समझी योजना थी और कोई अचानक से होने वाली घटना नही थी।

कर्नल रेजिनल्ड एडवर्ड हैरी डायर, भारतीय सेना के एक अधिकारी थे, जो temporary ब्रिगेडियर जनरल के रूप में पंजाब बुलाया गया था।

डायर 11 अप्रैल की शाम को जलंधर से अमृतसर पहुँचा । एक नई किताब में ये कहा गया है, Dyer जब अमृतसर आया था तो उस समय उसे कोई खास नही जानता था और उसका करियर बहुत ही बुरी स्तिथि में था।  लेकिन 13 अप्रैल के नरसंहार के बाद उसे एक तरह की अमरता मिल गई । शांतिपूर्ण भीड़ पर गोलीबारी करने के आदेश के कारण उन्हें "अमृतसर का कसाई" कहा जाता है।

“डायर समय-समय पर ये देखता की गोली किस तरफ चलाई जा रही और फिर उन स्थानों पर निर्देशित करता जहां भीड़ सबसे ज्यादा हो"। उसने ऐसा इसलिए नहीं किया क्योंकि भीड़ तितर-बितर करने के लिए धीमी थी, बल्कि इसलिए कि उसने वहाँ मौजूद सारे हिंदुस्तानियों को इकट्ठा होने के लिए सजा देने का मन बना लिया था । कुछ सैनिकों ने शुरू में हवा में गोली मारी, जिस पर जनरल डायर चिल्लाया: "गोली नीचे चलाओ, तुम सभी को यहां क्यों लाया गया है? बाद में डायर ने साफ साफ अपनी गवाही में कहा कि भीड़ को तितर-बितर करने के लिए उसने कोई चेतावनी नहीं दी और वह अपने सैनिकों को गोली मारने का आदेश देने के लिए उसे कोई पश्चाताप नहीं है।13 अप्रैल, 1919 को 55 वर्ष की उम्र वाला डायर, एक possessed इंसान की तरह था। Alfred Draper की किताब “Amritsar: The massacre that ended the Raj” में,  डायर के bodyguard Sergeant William Anderson उस दिन को याद कर बताता है कि कैसे घबराई भीड़ पे गोली चलने के बाद वहाँ की जमीन सफेद कपड़ों की बाढ़ में डूबी लग रही थी। जब सैनिकों ने अपनी कार्बाइन खाली कर दी थी, तो डायर ने उन्हें फिर से लोड करने और जहां भीड़ सबसे घनी थी उस तरफ गोलीबारी करने का निर्देश दिया।

नरसंहार के एक दिन बाद किचिन, जो की लाहौर के कमिश्नर थे, उनके साथ-साथ जनरल डायर, इन दोनों ने लोगों को चेतावनी देने के लिए धमकी भरी भाषा का इस्तेमाल किया । नरसंहार के एक दिन बाद ही 14 अप्रैल की दोपहर को अमृतसर के स्थानीय निवासियों को डायर के उर्दू बयान का अनुवाद निम्नलिखित है:

तुम लोग अच्छी तरह जानते हैं कि मैं एक सिपाही और फौजी हूं। तुम युद्ध चाहते हैं या शांति? यदि तुम युद्ध की कामना करते हैं, तो सरकार इसके लिए तैयार है, और यदि तुम शांति चाहते हैं, तो मेरे आदेशों का पालन करो और अपनी सभी दुकानें खोलो; नही तो मैं गोली मार दूंगा। तुम लोग सरकार के खिलाफ बात करते हो और राजद्रोह की बात करते हो । मैं इन सभी की रिपोर्ट करूंगा । मेरे आदेशों का पालन करो। मैं और कुछ नहीं करना चाहता । मैंने 30 से अधिक वर्षों के लिए सेना में सेवा की है। मैं भारतीय सिपाही और सिख लोगों को अच्छी तरह समझता हूं। तुमको मेरे आदेशों का पालन करना होगा और शांति का पालन करना होगा। अन्यथा फोर्स और रायफल से दुकानें खोली जाएंगी। तुमको मुझे हर बदमाश की रिपोर्ट करनी होगी । मैं उन्हें गोली मार दूंगा। तुम लोगों ने अंग्रेजों को मारने का बुरा काम किया है। इसका बदला तुमसे और तुम्हारे बच्चों से लिया जाएगा।

 

इस नरसंहार की जांच के लिए लॉर्ड हंटर की अध्यक्षता में Hunter Commission की inquiry बैठाई गई जिसमें डायर ने एक घातक गवाही दी । उन्होंने स्वीकार किया कि वह बिना फायरिंग के भीड़ को तितर-बितर कर सकते थे, लेकिन ऐसा नहीं करने का फैसला किया क्योंकि उसे लगा की ऐसा करने से वो कमजोर दिखेगा और वहाँ के लोग बाद में उसका मज़ाक उड़ाएंगे। उन्होंने कहा कि अगर हो सकता था तो वह और भी अधिक लोगों को मारने के लिए मशीनगनों का इस्तेमाल करते । उसे घायलों की मदद करने का कोई कारण नहीं दिखा। समिति की रिपोर्ट डायर की आलोचना की।

डायर को उनकी ड्यूटी से हटा दिया गया था लेकिन वह ब्रिटेन में एक मशहूर हीरो बन गया।

ब्रिटेन लौटने पर ब्रिगेडियर डायर को £26000 भेंट किया गया, जो उन दिनों एक बड़ी रकम थी, (2013 में ये लगभग £1 मिलियन होती)। ये पैसा Morning Post जो एक conservative, और साम्राज्यवादी समर्थक अखबार थी उसके द्वारा इकट्ठा किया गया था, जो बाद में Daily Telegraph के साथ merge हो गया।

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